Sunday, 27 December 2020

मानसिक संतुलन बनाए रखे

               
          
               मानसिक संतुलन बनाए रखे

  

   मस्तिष्क मानवी सत्ता का ध्रुव केन्द्रं है।
उसकी असीम शक्ति है। इस शक्ति का सही उपयोग कर सकना यदि संभव हो सके तो मनुष्य अभीष्ट प्रगति पथ पर बढ़ता ही चला जाता है । मस्तिष्क के क्रियाकलाप इतने चमत्कारी है कि इनके सहारे भौतिक ऋद्धियों में से बहुत कुछ उपलब्ध हो सकती हैं। 

       मस्तिष्क जितना शक्तिशाली है , उतना ही कोमल भी है। उसकी सुरक्षा और सक्रियता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि अनावश्यक गर्मी से बचाए रखा जाए ।
उससे ठीक काम लेना हो तो संन्तुलित परिस्थितियाँ बनाए रखना आवश्यक है। 

                       मस्तिष्क को बाहरी गरमी  तेज धूप , गरम पानी रसायनों से मिलती है , किंतु भीतरी गर्मी उत्पन्न होने के कारण उत्तेजनाँए होती हैं । उनकी मात्रा जितनी बढ़ेगी उतनी ही मानसिक संरचना को स्थायी रूप से हानि पहुचेगी। 

               आवेश चढने पर आदमी अर्द्धविक्षिप्त जैसी स्थिति में पहुच जाता है। उसकी कल्पना , निर्णय ,हरकते सब कुछ विचित्र हो जाती हैं । क्रोध का आवेश जिस पर चढ़ रहा हो उसकी गतिविधियों पर ध्यान पूर्वक दृष्टि डाली जाए तो पता चलेगा कि  पागलपन में अब बहुत थोड़ी कमी रह गई है।
 अधिक क्रोध आने पर मस्तिष्कीय द्रव उबलने लगता है और यदि उसे ठंढा न किया जाए तो मानसिक रोगों से लेकर हत्या -आत्महत्या जैसे क्रूर कार्य कर बैठने जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
    
             गुस्से मे तमतमाया चेहरा राक्षसों जैसा बन जाता है । आँखें , होंठ , नाक आदि पर आवेशों के उभार प्रत्यक्ष दीखाते हैं ।मुहँ से अशिष्ट शब्दों का उच्चारण चल पडता है । रक्त प्रवाह की तेजी से शरीर जलने लगता है । हाथ पैर काँपते और रोंए खड़े हो जाते हैं।

             

   

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