Sunday, 7 February 2021

क्षुद्रता

                             क्षुद्रता






जीवन का लक्ष्य मात्र अपने स्वार्थ एवं निजी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति तक सीमित रखने से उद्देश्य  क्षुद्र बन जाते हैं एवं मानसिकता भी संकीर्ण बन कर रह जाती है।

इस संकीर्ण स्वार्थपरता को धीरे-धीरे व्यक्तित्व का विनाश करने का अवसर मिल जाता है।

ऐसे व्यक्ति, मात्र जीवन का लक्ष्य, विलास -वैभव मान करके बैठ जाते हैं एवं उनके आत्मा उन्नति के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। इन्ही निकृष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ऐसे व्यक्ति अपने शरीर स्वास्थ्य,मन विचारों को तबाह करते दिखाई पड़ते हैं।

नकारात्मक विचारों के निरंतर प्रहारों से उनका मन- मस्तिष्क शमशान की तरह  विकारों  से भरा रहता है।

 जिस जीवन को शांति, सुख, आनंद के साथ जिया जा सकता था उसी जीवन को दुखों का जखीरा बनते देर नहीं लगती।


सोच में छोटापन रखने वाले ने तो स्वयं विकसित हो पाते हैं और ना ही  अपने परिवार के विकास- पोषण के लिए कोई सम्यक व्यवस्था बना पाते हैं और उनके बच्चे संस्कार पाने से वंचित रह जाते हैं  तो बड़ों का आशीष भी उन्हें नहीं मिल पाता है उनके संबंध भी स्वार्थ की धुरी पर  बनते हैं तो जब तक स्वार्थ की पूर्ति होती दिखती है तब तक तथाकथित मित्रों सहयोगियों का जमावड़ा उनके आसपास रहता है बाद में उनको भी उजड़ते- बिखरते देर नहीं लगती है। कहने का अभिप्राय इतना मात्र है कि बाहर का बिखराव, अंदर की  निकृष्टता  की ही अभिव्यक्ति है


"सदविचारों की स्वाध्याय संचित पूजी ही मनुष्य की सच्ची आध्यात्मिक संपदा है"

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Friday, 5 February 2021

लक्ष्य

                                लक्ष्य

 


लक्ष्य कहते हैं हम इन नश्वर चीजों के लोभ, मोह,  लालसा आदि को हम सब यह जानते हैं कि किसी भी प्रकार का भौतिक सुख शाश्वत नहीं होता है लेकिन फिर भी हम अपनी सारी जिंदगी के अमूल्य समय को इनको पाने में गवा देते हैं
    

   अरे ! लक्ष्य वो हो जो इस लोक में भी शाश्वत रहे और परलोक मैं भी शाश्वत रहे।
लक्ष्य ऐसा बनाओ जैसे परमात्मा से मिलन का ऐसा जो शाश्वत सुख प्राप्त कराएं। 
इस संसार में यदि खुश और सुखी रहना चाहता है तो परमात्मा से प्रेम करो।
परमात्मा से प्रेम करने से पहले खुद से प्रेम करो खुद से प्रेम करना है तो वह कर्म करो जो हमारी आत्मा को सुख प्राप्त कराएं। तभी हम खुद से प्रेम करेंगे ,खुद से प्रेम करेंगे तो खुद पर भरोसा होगा और जिसे खुद पर भरोसा होता है वो इस संसार में कोई भी चीज प्राप्त कर सकता है। 


किसी भी मनुष्य की चार गुरु होते हैं 
1.गुरु
2.मां
3.पिता
4.पुस्तक या शास्त्र
 
मनुष्य जीवन अगर सफल या सिद्ध करना है तो इन चारों गुरु की आज्ञा और उनके निर्देशों क पालन करो
संसार की कोई भी शक्ति इन चारों महात्माओं से बड़ी नहीं है इन्हें के चरणों में स्वर्ग है।


नजरिया


     
जिंदगी जीना और जीवन में कुछ हासिल करना निश्चय ही आसान हो जाएगा अगर इस नजरिए से जिंदगी जिया जाए-
  
इस संसार को एक थिएटर मानो जिसमें एक नाटक रूपी फिल्म की शूटिंग चल रही है जिस के डायरेक्टर हैं भगवान यानी की प्रकृति।
इस नाटक में सब को अलग-अलग किरदार मिले हैं और किरदार पूरा होते हुए कि दूसरा किरदार मिल जाता है जैसे-किसी को मां का किरदार किसी को पिता का तो किसी को मालिक तो किसी को नौकर का तो किसी को गुरु का तो किसी को शिष्य का  किरदार मिला इस कर्म युग में हम अपने किरदार को पूर्णता सर्वोत्तम रूप से प्रस्तुत करके समय के साथ दूसरा किरदार को  बखूबी निभा सकते हैं ।   
   इसलिए बिना कुछ ज्यादा सोचे अपना किरदार सबसे अच्छा प्रस्तुत करने के लिए मेहनत करो ताकि इस नाटक रूपी फिल्म को अच्छा से अच्छा बनाया जा सके।
  केवल अपने-अपने डायलॉग को अच्छा से अच्छा प्रस्तुत करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहो डायलॉग अच्छा बोलने पर नाटक रूपी फिल्म अपने आप अच्छी हो जाएगी।
 खुशी मन से रात को सोने से पहले अपने डायलॉग को दोहरा कर सोए क्योंकि याद रहे सुबह उठकर डायलॉग बोलने है।


संसार वैसा नहीं है जैसा हमें दिखाई देता है संसार वैसा है जैसा हमारा नजरिया होता है इसलिए अपने अपने नजरिए को बदलिए अगर आप अनुकूल आनंद का अनुभव नहीं कर रहे हैं तो निश्चित रूप से आपका नजरिया संसार के प्रति या अपने प्रति कहीं न कहीं नकारात्मक है।

हमारा नजरिया बनता है विचारों से, हमारा विचार बनता है संगत क्योंकि  संगत से मिलती हमें सूचनाएं और हमारा मस्तिष्क और मन दोनों सूचनाओं पर ही सोचते है।
   
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Monday, 4 January 2021

दुख का अनुभव किए बिना सुख की अनुभूति नहीं होती



 सच्चा जीवन

जो व्यक्ति हर पल अपने प्रति ईमानदार रहता है, वास्तव में वही सच्चा जीवन जीता है।कबीर दास जी ने कहा है कि ईश्वर ने जिस तरह पवित्र आत्मा के साथ तुम्हें पृथ्वी पर भेजा था, ठीक उसी तरह उन्हें दे देना। जो व्यक्ति ईश्वर को कभी नहीं भूलता और सदैव अपने कर्तव्यों को निष्ठा पूर्वक निभाता है और जो मिल जाए उसी में संतुष्ट हो जाता है वही सच्चा सुखी है। संतोष  जीवन और असंतोष मृत्यु। 

मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र और सबसे बड़ा दुश्मन उसके अपने विचार ही हैं। मनुष्य को यह जानना- समझना होता है कि कौन सा विचार उसका मित्र है और कौन सा विचार उसका दुश्मन।

सकारात्मक विचार उसका मित्र और अपना साथ कई दोस्तों को लाता है और नकारात्मक विचार वाला व्यक्ति दुश्मनों से घिर जाता है। असल में सभी लोग जीवन को अपने अपने नजरिए से देखते हैं;

कोई कहता है कि जीवन एक खेल है कोई कहता है कि जीवन एक यात्रा है कोई कहता है कि जीवन एक दौड़ है।

कहने का तात्पर्य ही है कि हम जिस नजरिए से जीवन को देखेंगे, हमारा जीवन वैसा ही बन जाएगा, लेकिन सच्चा जीवन वही जी सकता है जो अपने जन्म और मृत्यु के बीच के समय को भरपूर हास्य और प्रेम से भर दे।
     अक्सर मनुष्य अपने भविष्य और अतीत के बारे में सोचता रहता है और इस चक्कर में वर्तमान की कोई परवाह नहीं करता, जबकि जीवन वर्तमान में ही है" कल कभी नहीं आता" जो है वह आज और अभी है। जो समय बीत गया उसे याद करके पछताना नहीं चाहिए। अगर अतीत मनुष्य से गलती हुई भी तो उसे उससे सबक लेकर अपने वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य को भविष्य में आने वाले संकटों को देखकर घबराना नहीं चाहिए क्योंकि जिस मनुष्य का वर्तमान आनंदित है उसका भविष्य भी सुंदर होगा।वर्तमान को आनंदित बनाने के लिए मनुष्य को कोई भी कार्य शुरू करने से पहले उसके सभी पहलुओं पर गौर कर लेना चाहिए।
   जैसे- वह यह कार्य क्यों कर रहा है, क्या वह है इस कार्य को अकेले कर पाएगा या उसे और लोगों की जरूरत पड़ेगी और इस काम के नतीजे क्या होंगे।
बिना सोचे विचारे किए गए काम का नतीजा अक्सर दुखद होता है










    जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा ‌।

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई , धर्म नहीं कोई न्यारा।।


शांति का संबंध मन से ही वस्तु से नहीं जिन्होंने भगवान का  आमंत्रण सुना है वह कभी घाटे में नहीं रहे। साधना का अर्थ है अपने को  अ है बनाना

Thursday, 31 December 2020

संस्कार का महत्व

 संस्कार जीवन का एक अनमोल खजाना है जिसके अंदर यह खजाना है वह प्रत्येक जीव का का दिल जीत सकता है वह जीवन में सब कुछ पा सकता है-

जिस प्रकार कोई भी चीज करने की प्रक्रिया होती है -

    जैसे-अगर हमें कोई फसल को उगाना है तो पहले हम उस खेत को जिस खेत में हमें उस फसल को उगाना है उस खेत की हम जुताई करते हैं फिर उसमें बीज बोलते हैं फिर सिंचाई करते हैं फिर फिर पौधों पर फल लगते हैं फिर से कटाई करते हैं तब जाकर हम उस फसल का उपयोग करते हैं

ऐसे ही संस्कार सीखने में कुछ प्रक्रिया होती है और यह स्वयं होती है-

संस्कार सीखने में जो पहला चरण होता है वह होता है संगत का जैसा होता है संगत वैसे ही मिलती हमें वहां की सूचना और हमारा मस्तिष्क सूचना पाकर ही विचार आता है और जैसा होता है हमारा विचार वैसा ही हम करते हैं अपना कार्य और जैसा होता है अपना कार्य वैसे होता है हमारा संस्कार जैसे हमारा होता है संस्कार वैसे लोगों से हम करते हैं वैसे ही व्यवहार और जैसा होता है हमारा व्यवहार वैसा होता है हमारा प्रचार और जैसे होता है हमारा प्रचार वैसे होता है हमारा व्यापार और जैसे होता है हमारा व्यापार होता है फिर वैसे ही



सपना साकार यह नियम सत्य है इसे कोई नकार नहीं सकता क्योंकि यह सब पर लागू होता है और इसी नियम के अनुसार और यह अनुभव कर ही रहीम दास जी ने कहा है



       संगत से गुण होत है संगत से गुण जात।

       बांस, फांस और मिश्री एक ही भाव बिकात।।








    सलिए जीवन में जैसी संगत होगी वैसे ही आपका विचार होगा और जैसा आपका विचार होगा वैसा आपका संस्कार होगा इसलिए सोच समझकर संगत क्योंकि संगत का ही असर पूरे जीवन पर पड़ता है अच्छे लोगों के साथ रहिए जो सत्य की राह पर इमानदारी से चलते हो और अपना धर्म और  कर्तव्य को पूर्ण रुप से ध्यान में रखकर प्रत्येक कार्य को करते हो।

    Sunday, 27 December 2020

    मानसिक संतुलन बनाए रखे

                   
              
                   मानसिक संतुलन बनाए रखे

      

       मस्तिष्क मानवी सत्ता का ध्रुव केन्द्रं है।
    उसकी असीम शक्ति है। इस शक्ति का सही उपयोग कर सकना यदि संभव हो सके तो मनुष्य अभीष्ट प्रगति पथ पर बढ़ता ही चला जाता है । मस्तिष्क के क्रियाकलाप इतने चमत्कारी है कि इनके सहारे भौतिक ऋद्धियों में से बहुत कुछ उपलब्ध हो सकती हैं। 

           मस्तिष्क जितना शक्तिशाली है , उतना ही कोमल भी है। उसकी सुरक्षा और सक्रियता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि अनावश्यक गर्मी से बचाए रखा जाए ।
    उससे ठीक काम लेना हो तो संन्तुलित परिस्थितियाँ बनाए रखना आवश्यक है। 

                           मस्तिष्क को बाहरी गरमी  तेज धूप , गरम पानी रसायनों से मिलती है , किंतु भीतरी गर्मी उत्पन्न होने के कारण उत्तेजनाँए होती हैं । उनकी मात्रा जितनी बढ़ेगी उतनी ही मानसिक संरचना को स्थायी रूप से हानि पहुचेगी। 

                   आवेश चढने पर आदमी अर्द्धविक्षिप्त जैसी स्थिति में पहुच जाता है। उसकी कल्पना , निर्णय ,हरकते सब कुछ विचित्र हो जाती हैं । क्रोध का आवेश जिस पर चढ़ रहा हो उसकी गतिविधियों पर ध्यान पूर्वक दृष्टि डाली जाए तो पता चलेगा कि  पागलपन में अब बहुत थोड़ी कमी रह गई है।
     अधिक क्रोध आने पर मस्तिष्कीय द्रव उबलने लगता है और यदि उसे ठंढा न किया जाए तो मानसिक रोगों से लेकर हत्या -आत्महत्या जैसे क्रूर कार्य कर बैठने जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
        
                 गुस्से मे तमतमाया चेहरा राक्षसों जैसा बन जाता है । आँखें , होंठ , नाक आदि पर आवेशों के उभार प्रत्यक्ष दीखाते हैं ।मुहँ से अशिष्ट शब्दों का उच्चारण चल पडता है । रक्त प्रवाह की तेजी से शरीर जलने लगता है । हाथ पैर काँपते और रोंए खड़े हो जाते हैं।

                 

       

    Tuesday, 5 May 2020

    जीवन का सत्संकल्प


                   हमारा युग निर्माण सत्संकल्प

     
       यह सत्संकल्प सभी आत्म निर्माण , परिवार निर्माण एवं समाज निर्माण के साधकों को नियमित पढ़ते रहना चाहिए। इस संकल्प के सूत्रों को अपने व्यक्तित्व में ढालने का प्रयत्न करते रहना चाहिए। 

    इस सूत्रों की व्याख्या ' इक्कीसवीं सदी का संविधान ' पुस्तक में पढ़े।

    हम ईश्वर को सर्वव्यापी , न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे।

    ✳शरीर को भगवान का मन्दिर समझकर आत्मसंयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।

    ✳ मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे।

    ✳ इंन्द्रिय संयम , अर्थ संयम , समय संयम और विचार संयम का सतत अभ्यास करेंगे।

    ✳अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे।

    ✳ मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्तव्यों का पालन करेंगे और सामाजनिष्ठ बने रहेंगे।

    ✳ समझदारी , ईमानदारी , जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।

    ✳ चारों ओर मधुरता , स्वच्छता , सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।

    ✳ अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलतेहुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।

    ✳ मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं , योग्यताओं , योग्यताओं एवं विभूतियों को नही , उसके सविचारों और सत्कर्मों को मानेंगे।

    ✳  दूसरों के साथ वह व्यवहार नही करेंगे , जो हमें अपने लिए पसंद नही।

    ✳ नर - नारी के प्रति परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे।

    ✳  संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य प्रसार के लिए अपने समय , प्रभाव , ज्ञान , पुरूषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे।

    ✳ परंपराओं की तुलना में विवेक को महत्व देंगे।

    ✳  सज्जनों को संगठित करने , अनीति से लोहा लेने और नवसृजन की गतिविधियों में पूरी रूचि लेंगे।

    ✳ राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान रहेंगे। जाति , लिंग ,भाषा , प्रांत ,संप्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव नही बरतेंगे।

    ✳ मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है - इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनायेगें  , तो युग अवश्य बदलेगा।
      


                                सत्य वाक्य 

     🌟 जीवन का अर्थ है- समय । जो जीवन से प्यार करते हों , वे आलस्य में समय नष्ट न करें।

    🌟 मनुष्य का जन्म तो सहज होता , पर मनुष्यता उसे कठिन प्रयत्न से प्राप्त करनी पड़ती है।

    🌟 संकटों और दुःखो से तभी छुटकारा मिल सकता है , जब उससे मुक्ति पाने के लिए प्रयास किए जाए।

    🌟जिसने जीवन में स्नेह - सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया , सचमुच वही सबसे बड़ा कलाकार है।